हक़ीकत नहीं
ना ही फसाना है ये
ख्वाबों में बस
आना-जाना है॥
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥
लोगों की बातें मैं सुनता नहीं
अपना कहा मैं करता नहीं
अब होने
ये क्या लगा है
दिल ही नहीं,
ना ही मयखाना है ये॥
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥
जब आसमां से उतर
जब जमीं देखता हूँ
सड़क है ना ही पगडंडी
और ना पग के निशान
ढूँढू तो ढूँढू,
आशियाँ अपना कैसे
राह-ए-डगर को
जो रूक जाना है॥
हक़ीकत नहीं, ना ही फसाना है ये॥
© राजीव उपाध्याय
आपकी लिखी रचना बुधवार 24 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........... http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यशोदा जी कि आपने अपना कीमती समय निकालकर इसे समीक्षा हेतु अपने चिट्टे पर स्थान दे रही हैं। बहुत-बहुत धन्यवाद आपको।
हटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
सादर..
धन्यवाद यशोदा जी।
हटाएंकामयाब कोशिश....बेहतरीन रचना...अलग रंग...अलग रूप...वाह...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भास्कर जी। प्रयास किया है कि कुछ लिख सकूँ।
हटाएंरचना और चित्र दोनों में बहुत सामंजस्य है | सुन्दर |
जवाब देंहटाएं: शम्भू -निशम्भु बध --भाग १
बहुत-बहुत धन्यवाद प्रसाद जी कि आपने समय निकालकर टिप्पणी की। आपसे नम्र निवेदन है कि अगर कोई त्रुटि हो तो बताएँ चाहे वो भाषा की हो या फिर शैली संबन्धित। यही मार्गदर्शन आगे बढ़ने में सहयोग देगा। पुनश्च सादर धन्यवाद
हटाएंUmda prastuti ...badhaayi
जवाब देंहटाएंधन्यवाद परवीन जी। अगर कोई कमी हो तो अवश्य बताएं।
हटाएंधन्यवाद परवीन जी। अगर कोई कमी हो तो अवश्य बताएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक और सुन्दर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद शर्मा जी।
हटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने,
जवाब देंहटाएंजीवन में ऐसा बहुत कुछ होता है जो न तो हक़ीकत होती है और न अफ़साना !
‘स्वयं शून्य’ भी ऐसी ही एक अवधारणा है ।
जी महेन्द्र जी, मैं आपसे सहमत हूँ। यही मैं भी कहना चाहता हूँ। आपने मेरी भावनाओं को वैसे ही समझा जैसा मैं कहना चाहता हूँ। स्वयं शून्य भी उसी भाव बृहत पक्ष है और रचनाएं विभिन्न पहलू।
हटाएंजी बहुत बहुत धन्यवाद।
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