कहकहे भी कमाल करते हैँ
आँसुओं से सवाल करते हैं।
ज़ब रोते हैं तन्हा हम
हँसा-हँसा कर बुरा हाल करते हैं।
कहकहे भी कमाल करते हैँ॥
आँसुओं से सवाल करते हैं।
ज़ब रोते हैं तन्हा हम
हँसा-हँसा कर बुरा हाल करते हैं।
कहकहे भी कमाल करते हैँ॥
रूक रूक कर चलना, इक अदा बन गई।
कहते थे मय जिसको, वही सजा बन गई॥
नींद आती है हर रोज, जाने ही कितने बार।
पर आँखों को आजकल फ़ुर्सत कहाँ है॥
बहुत खूब ... इस अदा के ही तो मारे हैं सब ...
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद दिगंबर जी।
हटाएंtoo good
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुशा जी।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुतिकरण
जवाब देंहटाएंधन्यवाद भास्कर जी।
हटाएंBahut sunder prastuti !
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद परी जी।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (16-10-2014) को "जब दीप झिलमिलाते हैं" (चर्चा मंच 1768) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद शास्त्री जी।
हटाएंबुरा / फुर्सत सही कर लें टंकण की गलतियाँ हैं ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर :)
धन्यवाद जोशी जी। आपके द्वारा बताए गलतियों में सुधार कर दिया हूँ।
हटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद विम्मी जी।
हटाएंअच्छा शेर है.
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद पाण्डेय जी।
हटाएंकहकहे भी कमाल करते हैँ
जवाब देंहटाएंआँसुओं से सवाल करते हैं।
...बहुत खूब!
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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