गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

अकेले ही अकेले हूँ

प्रतिलिपि डाट काम पर प्रकाशित एक कविता आपकी नज़र
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अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे
लोग सारे चले गये
तन्हा मैं ही रह गया।

राही सभी चले गये
देखता मैं रह गया
दूर गया कारवाँ
अकेला ही ठहर गया।

फैसला ये अज़ीब है
लोगों में मैं बँट गया
और जाकर रूका वहाँ
सब कुछ जहाँ थम गया।

अकेले ही अकेले हूँ
ना साथ कोई है मेरे॥
© राजीव उपाध्याय


12 टिप्‍पणियां:

  1. सब का साथ होते हुए भी जिंदगी अकेली ही बितानी होती है ...

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    1. जी ये एक अनचाहा सच है जिसके साथ सबको जीना होता है।

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  2. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (12.12.2014) को "क्या महिलाए सुरक्षित है !!!" (चर्चा अंक-1825)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  3. अकेला चल चला चल...यही रीत है ..भावपूर्ण रचना .

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  4. सच्चा सच ...... सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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