दूर-दूर तक
आदमी ऐसा कोई दिखता नहीं
कि कर लें यकीन
उस पर एक ही बार में।
यकीन मगर करना भी है
तुझ पर भी
ऐसा नहीं
कि यूँ करके सिर्फ मुझसे ही है
हर आदमी ही इत्तेफाकन बारहा है।
हर आदमी यहाँ
कश्ती एक ही में सवार है
जाना है एक ही जगह
और एक ही मझधार है
बस रंग-पोत कर
कर डाला अपनी अलग पतवार है।
और उसको ये यकीन अब है हो चला
कि आदमी नहीं वो
वो तो आदमी का मददगार है।
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (21-06-2019) को "योग-साधना का करो, दिन-प्रतिदिन अभ्यास" (चर्चा अंक- 3373) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा में स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद सर।
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