लफ़्ज़ों में लरज़िश तुम्हारे लम्स की
रोशनाई में रंग तेरे अबसार का
तुम्हारा ख़त मिला।
मेरे देखे से लकदक हुआ गुलमोहर
खिल उठा रंग गुलाबी कचनार का
शबे फिराक़ में पामाल दिल के काँधे पर
हाथ हो जैसे किसी ग़मगुसार का
तुम्हारा ख़त मिला।
मेरे माथे पर नसीब की दस्तक
मन में मौसम किसी त्यौहार का
तुम्हारा ख़त मिला।
युगों से दग्ध विरहणी की ख़ातिर
छेड़ दे सुर कोई मिलन मल्हार का
तुम्हारा ख़त मिला।
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सुदर्शन शर्मा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" मंगलवार 30जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंस्थान देने के लिए सादर आभार।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (31-07-2019) को "राह में चलते-चलते"
जवाब देंहटाएंपर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद सर।
हटाएंवाहः
जवाब देंहटाएंक्या बात है
सादर धन्यवाद मैम।
हटाएंबहुत उम्दा और बेहतरीन सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंवाह !बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
सादर आभार।
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंवाह ! बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद।
हटाएंसुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद।
हटाएंलाजवाब सृजन...
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
हटाएंबहुत खूब राजीव जी।
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