माँ है रेशम के कारख़ाने में
बाप मसरूफ़ सूती मिल में है
कोख से माँ की जब से निकला है
बच्चा खोली के काले दिल में है।
जब यहाँ से निकल के जाएगा
कारख़ानों के काम आएगा
अपने मजबूर पेट की ख़ातिर
हाथ सोने के फूल उगलेंगे
जिस्म चान्दी का धन लुटाएगा
खिड़कियाँ होंगी बैंक की रौशन
खून इसका दिये जलाएगा।
यह जो नन्हा है भोला-भाला है
खूनी सरमाये का निवाला है
पूछती है यह, इसकी ख़ामोशी
कोई मुझको बचाने वाला है!
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अली सरदार जाफ़री
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (06-09-2019) को "हैं दिखावे के लिए दैरो-हरम" (चर्चा अंक- 3450) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा में स्थान देने के लिए सादर धन्यवाद सर
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ६ सितंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्थान देने हेतु सादर आभार।
हटाएंजबरदस्त।
जवाब देंहटाएंयथार्थ का कला चेहरा ।
सादर आभार।
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