मैं लिख नहीं पाऊँगा
भव्य भूमिका
मेरे गीत के प्रस्तावाना के रूप में।
एक कवि से
कविता की यात्रा
के बीच ही
है साहस कुछ कहने का।
फूलों से गिर हुए
इन पँखुड़ियों में से ही
लगता है उचित एक कोई।
प्रेम अनुगूँजित होता रहेगा उसी से
जब तक
पँखुड़ी वो बालों में तुम्हारे
और हवा व ठंड जब
बढ़ते जाएंगे
रिक्त हो जाएगी धरती
प्रेम से जब
तो वे पँखुड़ियाँ
बुदबुदाती रहेंगी
गीत बगिया के
और तुम समझ जाओगी।
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ऑस्कर वाइल्ड(अनुवाद - राजीव उपाध्याय)
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२२-१२ -२०१९ ) को "मेहमान कुछ दिन का ये साल है"(चर्चा अंक-३५५७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी