कुफ़्र - अमृता प्रीतम
आज हमने एक दुनिया बेची
और एक दीन ख़रीद लिया
हमने कुफ़्र की बात की
सपनों का एक थान बुना था
एक गज़ कपड़ा फाड़ लिया
और उम्र की चोली सी ली
आज हमने आसमान के घड़े से
बादल का एक ढकना उतारा
और एक घूँट चाँदनी पी ली
यह जो एक घड़ी हमने
मौत से उधार ली है
गीतों से इसका दाम चुका देंगे
-------------
अमृता प्रीतम
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 29 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंचर्चा में स्थान देने के लिए सादर आभार।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंbahut sundar
जवाब देंहटाएंलाजवाब!
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
जवाब देंहटाएंगहन भाव सुंदर ।